बुधवार, २३ जुलै, २००८

आनंदवनभूवनी -

जन्मदु:खे, जरा दु:खे। नित्य दु:खे पुन: पुन:।
संसार त्यागणे जाणे।आनंदवनभूवनी॥१॥
वेधले चित्त जाणावे। रामवेधी निरंतरी।
रागे हो, वित रागे हो। आनंदवनभूवनी॥२॥
संसार वोढिता दु:खे। ज्याचे त्यासिच ठाउके।
परंतु येकदा जावे। आनंदवनभूवनी॥३॥
न सोसे दु:ख ते होते। दु:ख शोक परोपरी।
येकाकी येकदा जावे। आनंदवनभूवनी॥४॥
कष्टलो, कष्टलो देवा। पुरे संसार जाहला।
देहत्यागास येणे हो।आनंदवनभूवनी॥५॥
जन्म ते सोसिले मोठे। अपाय बहुता परी
उपाये धाडिले देवे। आनंदवनभूवनी॥६॥
स्वनी जे दिखिले रात्री। ते ते तैसेची होतसे।
हिंडता फिरता गेलो। आनंदवनभूवनी॥७॥
हे साक्ष देखिली दृष्टी। किती कल्लोळ ऊठिले।
विघ्नघ्ना प्रार्थिता गेलो। आनंदवनभूवनी॥८॥
स्वधर्माआड जे विघ्ने। ते ते सर्वत्र उठिले।
लाटिली कुटिली देवे। दापिली कापिली बहु॥९॥
विघ्नांच्या उठिल्या फौजा। भीम त्यावरि लोटला।
घर्डिली भर्डिली रागे। रडविली बडविली बळे॥१०॥
हाकिली, टाकिली तेणे। आनंदवनभूवनी।
हाकबोंब बहु जाली। पुढे खत्तल मांडले॥११॥
खौळले लोक देवांचे। मुख्य देवचि उठिला।
कळेना कायरे होते आनंदवनभूवनी॥१२॥
स्वर्गीची लोटली जेथे। रामगंगा महानदि।
तीर्थासी तुळणा नाहि। आनंदवनभूवनी॥१३॥
ग्रंथी जे वर्णिले मागे। गुप्तगंगा महानदि।
जळात रोकडे प्राणी। आनंदवनभूवनी॥१४॥
सकळ देवांचिये साक्षी। गुप्त उदंड भूवने।
सौख्यासि पावणे जाणे। आनंदवनभूवनी॥१५॥
त्रैलोक्य चालिले तेथे। देव-गंधर्व-मानवी।
ऋषि, मुनी, महायोगी। आनंदवनभूवनी॥१६॥
आक्रा आक्रा बहु आक्रा। काये आक्रा कळेचि ना।
गुप्त ते गुप्त जाणावे। आनंदवनभूवनी॥१७॥
त्रैलोक्य चालिल्या फौजा। सौख्य बंद-विमोचने।
मोहिम मांडली मोठी। आनंदवनभूवनी॥१८॥
सुरेश उठिला अंगे। सूरसेना परोपरी।
विकटे, कर्कशे याने। शस्त्रपाणी महाबळी॥१९॥
देव-देव बहुदेव। नाना देव परोपरी।
दाटणी जाहली मोठी। आनंदवनभूवनी॥२०॥
दिक्पती चालले सर्वे। नाना सेना परोपरी॥
वेष्टित चालले सकळे। आनंदवनभूवनी॥२१॥
मंगळे वाजती वाद्ये। महागणा-समागणे।
आरंभी चालला पुढे। आनंदवनभूवनी॥२२॥
रासभे राखिली मागे। तेणे रागेचि चालिला।
सर्वत्र पाठिशी फौजा। आनंदवनभूवनी॥२३॥
अनेक वाजती वाद्ये। ध्वनी कल्लोळ उठिला।
छबिने डोलती ढाला। आनंदवनभूवनी॥२४॥
विजई दीस जो आहे। ते दिसी सर्व ऊठती।
अनर्थ मांडला मोठा। आनंदवनभूवनी॥२५॥
देवचि तुष्टला होता। त्याचे भक्तीस भूलला।
साम्गुतां क्षोभला दु:खे। आनंदवनभूवनी॥२६॥
कल्पांत मांडिला मोठा। म्लेंच्छ, दैत्य बुडावया।
कैपक्ष घेतला देवी। आनंदवनभूवनी॥२७॥
बुडाले सर्वहि पापी। हिंदुस्थान बळावले।
अभक्तांचा क्षयो झाला। आनंदवनभूवनी॥२८॥
पूर्वी जे मारिले होते। तेचि आतां बळावले।
कोपला देव देवांचा। आनंदवनभूवनी॥२९॥
त्रैलोक्य गांजिले मागे। विवेकी ठाऊके जना।
कैपक्ष घेतला रामे। आनंदवनभूवनी॥३०॥
भीमची धाडिला देवे। वैभवे धाव घेतली।
लांगुळ चालिले पुढे। आनंदवनभूवनी॥३१॥
येथुनि वाढिला धर्मू। रमाधर्म समागमे।
संतोष मांडला मोठा\ आनंदवनभूवनी॥३२॥
बुडला औरंग्या पापी। म्लेंच्छ संहार जाहला।
मोडिली मांडिली क्षेत्रे। आनंदवनभूवनी॥३३॥
बुडाले भेदवाहि ते। दुष्ट चांडाळ पातकी।
ताडिले, पाडिले देवे। आनंदवनभूवनी॥३४॥
गळाले, पळाले, मेले। जाले देश धडी पुढे।
मिर्मळ जाहले पृथ्वी। आनंदवनभूवनी॥३५॥
उदंड जाहले पाणी। स्नान संध्या करावया।
जप-तप अनुष्ठाने। आनंदवनभूवनी॥३६॥
नाना तपे पुरश्चरणे। नाना धर्म परोपरी।
गाजली भक्ति हे मोठी। आनंदवनभूवनी॥३७॥
लिहिला प्रत्ययो आला। मोठा आनंद जाहला।
चढता वाढता प्रेमा। आनंदवनभूवनी॥३८॥
बंड पाषांड उडाले। शुद्ध अध्यात्म वाढले।
रामकर्ता रामभोक्ता। आनंदवनभूवनी॥३९॥
देवालये दिपमाळ। रंगमाळा बहुविधा।
पूसिला देवांचा देव। आनंदवनभूवनी॥४०॥
रामवरदायिनी माता। गर्द घेउनि उठिली।
मर्दिले पूर्विचे पापी। आनंदवनभूवनी॥४१॥
प्रत्यक्ष चालिली राया। मूळमाया समागमे।
नष्ट चांडाळ ते खाया। आनंदवनभूवनी॥४२॥
भक्तासि रक्षिले मागे। आताहि रक्षिते पहा।
बक्तासि दीधले सर्वे। आनंदवनभूवनी॥४३॥
आरोग्य जाहली काया। वैभवे सांडली सीमा।
सारसर्वस्व देवांचे। आनंदवनभूवनी॥४४॥
देव सर्वस्वी भक्तांचा। देव, भक्त दुजे नसे।
संदेह तुटला मोठा। आनंदवनभूवनी॥४५॥
देव-भक्त एक जाले। मिळाले जीव सर्वहि।
संतोष पावले तेणे। आनंदवनभूवनी॥४६॥
सामर्थ्ये येश कीर्तीची। प्रतापे सांडिली सीमा।
सारसर्वस्व देवाचे। आनंदवनभूवनी॥४७॥
रामकर्ता रामभोक्ता। रामराज्य भूमंडळी।
सर्वस्वे मीच देवाचा। माझा देव कसा म्हणो?॥४८॥
हेच शोधोनि पहावे। रहावे निचली सदा।
सार्थ श्रवणे होते। आनंदवनभूवनी॥४९॥
वेदशास्त्र-धर्म-चर्चा। पुराणे महात्मे किती।
कवित्वे नूतने जीर्णे। आनंदवनभूवनी॥५०॥
गीत-संगीत-सामर्थे। वाद्य कल्लोळ उठिला।
मिळाले सर्व अर्थार्थी। आनंदवनभूवनी॥५१॥
वेद तो मंद जाणावा। सिध्द आनंदवनभूवनी।
आतूल महिमा तेथे। आनंदवनभूवनी॥५२॥
मनासीप्रचिती आली। शब्दी विश्वास वाटला।
कामना पुरती सर्वे। आनंदवनभूवनी॥५३॥
येथूनि वाचती सर्वे। ते ते सर्वत्र देखती।
सामर्थ्य काय बोलावे?। आनंदवनभूवनी॥५४॥
उदंड ठेविली नामे। आपस्तुतीच मांडली।
ऐसे हे बोलणे नाहि। आनंदवनभूवनी॥५५॥
बोलणे आऊगे होते। चालणे पाहिजे बरे।
पुढे घडेल ते सारे। आनंदवनभूवनी॥५६॥
स्मरले लिहिले आहे। बोलता चालता हरी।
काय होईल पहावे। आनंदवनभूवनी॥५७॥
महिमा तो वर्णवेना। विशेष बहुता परी।
विद्यापिठ ते आहे। आनंदवनभूवनी॥५८॥
सर्व सद्या, कळा, विद्या। न भूतो न भविष्यति
वैराग्य जाहले सर्वे। आनंदवनभूवनी॥५९॥
- समर्थ रामदास स्वामी.

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